
हिमांशु/रायपुर सेंट्रल जेल की व्यवस्थाओं की पोल एक बार फिर खुल गई है। जेल के भीतर से निकली तस्वीरों ने पूरे जेल प्रशासन की कार्यप्रणाली पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। इन तस्वीरों में रायपुर के कुख्यात बदमाश और विचाराधीन बंदी खुलेआम कसरत करते और मोबाइल फोन का इस्तेमाल करते नजर आ रहे हैं। सवाल उठता है कि जेल के भीतर मोबाइल फोन आखिर पहुंचा कैसे? क्या जेल प्रशासन की सुरक्षा व्यवस्था सिर्फ दिखावे के लिए है?

जेल के अंदर का यह वीआईपी कल्चर अब किसी से छिपा नहीं है। जिन अपराधियों को सजा काटनी चाहिए, वे जेल में ऐशो-आराम का जीवन जी रहे हैं। कई बंदियों को “स्पेशल ट्रीटमेंट” मिल रहा है — मोबाइल, नशे का सामान और यहां तक कि बाहरी संपर्क की भी खुली छूट। यह न केवल जेल प्रशासन की नाकामी है, बल्कि कानून और व्यवस्था पर खुली चोट है।

पहले भी रायपुर सेंट्रल जेल से हिंसा और गैंगवार की खबरें सामने आ चुकी हैं। कभी ब्लेड से जानलेवा हमला, तो कभी गिलास को हथियार बनाकर बदमाशों के बीच भिड़ंत। यह सब दर्शाता है कि जेल के भीतर अपराधियों का नेटवर्क पहले से ज्यादा मजबूत हो चुका है। सवाल यह भी है कि आखिर इन अपराधियों को संरक्षण कौन दे रहा है? क्या जेल के भीतर प्रशासन और बदमाशों की मिलीभगत से यह सब हो रहा है?

सेंट्रल जेल प्रशासन के ढीले रवैये ने कानून व्यवस्था की साख पर बट्टा लगाया है। जेल अनुशासन और सुधार का केंद्र होना चाहिए, लेकिन रायपुर सेंट्रल जेल में यह “आरामगाह” बन चुकी है। जहां रसूखदार अपराधियों को वीआईपी ट्रीटमेंट, और कमजोर कैदियों को डर और दबाव में जीना पड़ता है।
अब वक्त आ गया है कि इस पूरी व्यवस्था पर सख्त कार्रवाई हो। जेल के भीतर से भ्रष्टाचार की जड़ें उखाड़नी होंगी। नहीं तो रायपुर सेंट्रल जेल अपराधियों के लिए सजा का नहीं, बल्कि “सुरक्षित ठिकाने” का प्रतीक बन जाएगी।
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