Thursday, November 27, 2025
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एमबीबीएस करते हुए गरीब, और पीजी करते करोड़पति!


‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : एमबीबीएस करते हुए गरीब, और पीजी करते करोड़पति!

सुनील कुमार ने लिखा है


26-Nov-2025 8:04 PM

पिछले कुछ दिनों से मध्यप्रदेश के एक ऐसे नौजवान के बारे में खबरें आ रही थीं जिसने अनारक्षित-आर्थिक-कमजोर की हैसियत से यूपीएससी का इम्तिहान दिया था, और आईएएस बनने के बाद जब उसका स्वागत हुआ, तो टीवी चैनलों के इंटरव्यू में ही पता लगा कि उसकी पत्नी बेंगलुरू में आईटी सेक्टर में काम करती है, जिसकी तनख्वाह इस नौजवान के कोचिंग सेंटर की कमाई से पांच गुना है, मां-बाप अलग कमाते हैं। ऐसे संपन्न परिवार का लडक़ा अपने को आर्थिक रूप से कमजोर बताकर आईएएस बन गया। वह खबर अभी चक्कर लगाना बंद कर भी नहीं पाई थी कि एक नई खबर आ गई कि आर्थिक रूप से कमजोर अनारक्षित तबके से मेडिकल कॉलेज पहुंचने वाले और ग्रेजुएट होने वाले लोगों ने चिकित्सा-पीजी के लिए एनआरआई, या मैनेजमेंट कोटे की सीटों पर दाखिला लिया है जिसकी फीस आधा-एक करोड़ रूपए बताई जाती है। अपने आपको ईडब्ल्यूएस बताकर मेडिकल-दाखिला लिया, एमबीबीएस किसी तरह किया, पीजी दाखिले में फ्लॉप शो रहा, तो उसके बाद मैनेजमेंट सीट या एनआरआई कोटे से पीजी दाखिला ले लिया। ईडब्ल्यूएस बनने के लिए परिवार की आय 8 लाख रूपए साल से अधिक नहीं होनी चाहिए, दूसरी तरफ अब आधा-एक करोड़ देकर वे आगे दाखिला ले रहे हैं।

जब अनारक्षित वर्ग के लिए ईडब्ल्यूएस सीमा तय की गई थी, और उनके लिए आरक्षण रखा गया था, तब ही यह आशंका होने लगी थी कि इसका बेजा इस्तेमाल कैसे किया जाएगा। यह ठीक वैसा ही है जैसा कि आज ओबीसी तबकों के भीतर क्रीमीलेयर के ऊपर वाले लोग भी झूठा आय प्रमाणपत्र बनवाकर आरक्षण का फायदा ले लेते हैं। बहुत से लोग तो बैंक खातों में मिलने वाली तनख्वाह को भी छुपा लेते हैं, और धड़ल्ले से फर्जी सर्टिफिकेट बनवा लेते हैं। फिर इनकी आर्थिक क्षमता की वजह से इनके बच्चे अधिक सक्षम रहते हैं, इम्तिहान में बेहतर तैयारी कर पाते हैं, और वे ही आरक्षण का अधिकतम फायदा झपट लेते हैं। अभी भारत के मुख्य न्यायाधीश ने दलितों के बारे में कहा था कि उनके आरक्षण से क्रीमीलेयर को बाहर करना जरूरी है, वरना सच में कमजोर लोगों को आरक्षण का फायदा नहीं मिल पाएगा। हम भी दशकों से यही तर्क लिखते आ रहे हैं कि सभी आरक्षित वर्गों से क्रीमीलेयर को बाहर किया जाए। लेकिन अभी अनारक्षित वर्ग का ईडब्ल्यूएस सर्टिफिकेट पाने के लिए सक्षम लोगों ने जैसी जालसाजी और धोखाधड़ी की है, उसका क्या किया जाए? जब कॉलेजों में दाखिला गलत तरीके से हो जाए, लोग डॉक्टर भी बन जाएं, तब अदालतें भी इस दुविधा में पड़ जाती हैं कि वे क्या करें? कैसे गलत दाखिले वाले इन लोगों की जिंदगी की घड़ी वापिस घुमाएं?

हमने कुछ दिन पहले ही मुख्य न्यायाधीश की बातों के संदर्भ में अपनी पुरानी बातें गिनाई थीं, लेकिन अब अनारक्षित ईडब्ल्यूएस के संदर्भ में इस पूरे मुद्दे पर एक बार और गौर करने की जरूरत है। जब कभी आरक्षण का लाभ पाने वालों में अपात्र लोग खड़े हो जाते हैं, तो उसका नुकसान बाकी तमाम लोगों को उठाना पड़ता है। एसटी, एससी, और ओबीसी तबकों के ताकतवर लोग जब आरक्षण पाकर समाज के अनारक्षित वर्गों के कमजोर लोगों से आगे निकल जाते हैं, तो सामाजिक न्याय के लिए स्थापित आरक्षण पर से लोगों का भरोसा उठने लगता है। वे देखते हैं कि उनके आसपास के बंगला-गाड़ी वाले, महंगी कोचिंग वाले एसटी-एससी, और ओबीसी बच्चे किस तरह आरक्षित वर्गों में आगे बढ़ते हैं। और अब तो अनारक्षित वर्ग के गरीब होने का झूठा सर्टिफिकेट जुटाकर संपन्न सवर्ण भी बाकी तमाम लोगों को पीछे छोडक़र आसमान पर पहुंच रहे हैं।

आरक्षण की व्यवस्था को लेकर समाज में जागरूकता की भी कोई कमी रहती है, और बहुत से लोग वैसे भी इस सामाजिक इतिहास से अपरिचित रहते हैं कि सदियों के अन्याय के मुआवजे के रूप में एसटी-एससी आरक्षण शुरू किया गया था। ऐसे लोग जब एसटी-एससी आरक्षण को क्रीमीलेयर मुक्त देखते हैं, तो उनका दिल और जलता है। अब अगर अनारक्षित ईडब्ल्यूएस के नाम पर बेइमानी और धांधली चलती रहेगी, तो आरक्षण की पूरी साख ही खत्म हो जाएगी। यह सिलसिला तुरंत खत्म होना चाहिए। चाहे यूपीएससी हो, चाहे मेडिकल या कोई और दाखिले, या फिर सरकारी नौकरी की बात हो, जहां-जहां यह धांधली हुई है, उसकी बहुत तेज रफ्तार जांच होनी चाहिए क्योंकि कुछ बरस नौकरी हो जाए, या कुछ बरस पढ़ाई हो जाए, तो उसके बाद अदालतें भी बहुत कड़वा फैसला लेना नहीं चाहतीं।

सरकार को बिना देर किए हुए एसटी-एससी से क्रीमीलेयर हटाने का कानून बनाना चाहिए। फिर सारे ही आरक्षित लोगों के प्रमाणपत्रों की खुली जांच करनी चाहिए, और जरूरत रहे तो ऐसे सारे नाम और उनके प्रमाणपत्र उसी तरह वेबसाइटों पर डालने चाहिए, जिस तरह चुनाव आयोग उम्मीदवारों की जानकारी पोस्ट करता है। न्याय की इस जरूरत को समझना चाहिए कि जब किसी व्यक्ति को आरक्षण का फायदा देकर दूसरों के ऊपर रखा जाता है, पढ़ाई की सीट या नौकरी दी जाती है, तो बाकी लोगों का भी हक रहना चाहिए कि वे ऐसे लोगों के प्रमाणपत्रों के नकली होने पर उस पर सवाल उठा सकें। ताजा मेडिकल घोटाला बहुत भयानक है, और इससे अदालत, सरकार, और संसद सबकी आंखें खुलनी चाहिए ताकि वे इस सिलसिले को आगे बढऩे से रोकें। आरक्षण का लाभ पाने वाले के हर प्रमाणपत्र वेबसाइट पर रहने चाहिए जिसे लोग चुनौती दे सकें, और सरकार एक निर्धारित समय के भीतर उसकी जांच कर सके। सोच-समझकर जालसाजी और धोखाधड़ी करने वाले कुछ लोगों को सजा भी होनी चाहिए, ताकि बाकी लोग यह जुर्म करना छोड़ें।

भारत की सामाजिक व्यवस्था में आरक्षण पहले से एक बदनाम शब्द चले आ रहा है, इसे और अधिक बदनाम नहीं होने देना चाहिए। 

(क्लिक करें : सुनील कुमार के ब्लॉग का हॉट लिंक)



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