छत्तीसगढ़ की धरती ने अनेक महापुरुषों को जन्म दिया है, जिन्होंने अपने विचारों, कर्मों और संघर्षों से समाज को दिशा दी। ऐसे ही एक महान व्यक्तित्व थे पंडित सुंदर लाल शर्मा—स्वतंत्रता सेनानी, समाज सुधारक, कवि, लेखक और छत्तीसगढ़ी जनचेतना के अग्रदूत। उनका जीवन और कृतित्व छत्तीसगढ़ के सामाजिक, सांस्कृतिक और साहित्यिक इतिहास का अमूल्य अध्याय है।
पंडित सुंदर लाल शर्मा केवल स्वतंत्रता आंदोलन के सक्रिय सहभागी ही नहीं थे, बल्कि वे जनमानस को जाग्रत करने वाले विचारक भी थे। उन्होंने महसूस किया कि राजनीतिक स्वतंत्रता तभी सार्थक होगी, जब समाज सामाजिक कुरीतियों, अज्ञान और आत्महीनता से मुक्त होगा। इसी उद्देश्य से उन्होंने अपने लेखन और सामाजिक कार्यों के माध्यम से जन-जागरण का बीड़ा उठाया।
पंडित सुंदर लाल शर्मा का सबसे बड़ा योगदान छत्तीसगढ़ी भाषा और लोक-संस्कृति को प्रतिष्ठा दिलाना रहा। उस समय जब स्थानीय भाषाओं को हीन दृष्टि से देखा जाता था, उन्होंने छत्तीसगढ़ी को अभिव्यक्ति का सशक्त माध्यम बनाया। उनकी रचनाओं में छत्तीसगढ़ की मिट्टी की सुगंध, लोकजीवन की सादगी और जनभावनाओं की सच्ची तस्वीर दिखाई देती है।
उन्होंने सिद्ध किया कि मातृभाषा में किया गया साहित्य सृजन जनमानस को अधिक गहराई से प्रभावित करता है। उनके साहित्य ने लोगों में अपनी भाषा, संस्कृति और परंपराओं के प्रति गर्व की भावना जगाई।
समाज सुधारक के रूप में योगदान
पंडित सुंदर लाल शर्मा सामाजिक कुरीतियों के घोर विरोधी थे। उन्होंने जातिगत भेदभाव, अंधविश्वास, अशिक्षा और सामाजिक असमानता के खिलाफ आवाज़ उठाई। उनका मानना था कि समाज तभी प्रगति कर सकता है जब उसमें समरसता, समानता और मानवीय मूल्यों की स्थापना हो।
उन्होंने शिक्षा को सामाजिक परिवर्तन का सबसे प्रभावी माध्यम माना और जनसामान्य को शिक्षित करने पर विशेष बल दिया। उनके विचार आज भी सामाजिक सुधार के मार्गदर्शक सिद्ध होते हैं।
स्वतंत्रता आंदोलन और राष्ट्रप्रेम
स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान पंडित सुंदर लाल शर्मा ने अपने लेखन और विचारों के माध्यम से राष्ट्रप्रेम की भावना को जन-जन तक पहुँचाया। वे मानते थे कि स्वतंत्रता केवल सत्ता परिवर्तन नहीं, बल्कि आत्मसम्मान और सांस्कृतिक चेतना का जागरण है। उनके विचारों ने लोगों को विदेशी शासन के विरुद्ध मानसिक और वैचारिक रूप से तैयार किया।
आज के संदर्भ में प्रासंगिकता
पंडित सुंदर लाल शर्मा का जीवन आज भी उतना ही प्रासंगिक है जितना उनके समय में था। वैश्वीकरण के इस दौर में, जब स्थानीय भाषाएँ और संस्कृतियाँ हाशिए पर जा रही हैं, उनके विचार हमें अपनी जड़ों से जुड़े रहने की प्रेरणा देते हैं। मातृभाषा का सम्मान, सामाजिक समरसता और सांस्कृतिक स्वाभिमान—ये सभी मूल्य उनके जीवन दर्शन के केंद्र में थे।
पंडित सुंदर लाल शर्मा छत्तीसगढ़ की आत्मा के सच्चे प्रतिनिधि थे। उनका संपूर्ण जीवन समाज, संस्कृति और राष्ट्र के लिए समर्पित रहा। उनके आदर्शों पर चलना, उनकी रचनाओं और विचारों को नई पीढ़ी तक पहुँचाना ही उनके प्रति सच्ची श्रद्धांजलि है।
छत्तीसगढ़ के सामाजिक और सांस्कृतिक इतिहास में उनका योगदान सदैव स्वर्ण अक्षरों में अंकित रहेगा।



