सहायक आयुक्त थुतन वांगचू के नेतृत्व में नागरिक प्रशासन ने भारतीय सेना द्वारा समन्वित और संगठित इस कार्यक्रम में स्थानीय ग्रामीणों का नेतृत्व किया । केंद्रीय उच्च तिब्बती अध्ययन संस्थान, सारनाथ, वाराणसी (उत्तर प्रदेश) के 23 छात्र और एक शिक्षक भी अपनी देशभक्ति की जड़ों की खोज में इस मार्च में शामिल हुए।
मार्च के बाद, सभी एजेंसियां अपार देशभक्ति के जोश और कर्तव्य की गहरी भावना के साथ ‘नो प्लास्टिक जोन’ स्वच्छता अभियान के लिए एकजुट हुईं, कचरे को हटाया और नाजुक हिमालयी पारिस्थितिकी तंत्र की रक्षा के अभियान को मजबूत किया।
ऊँची चोटियों पर लहराता तिरंगा एकता का एक सशक्त प्रतीक बन गया—सैनिकों ने ‘ज़मीन के लिए जीने’ का उदाहरण पेश करते हुए सीमा की सुरक्षा की, ग्रामीणों ने परंपराओं की रक्षा की, और प्रशासकों ने स्थिरता की वकालत की। यह मार्च सभी को एक मूल्यवान नागरिक बनने का सबक लेकर आया, जिसने “आज़ादी का अमृत महोत्सव” पर ज़ोर दिया और कहा कि देश का भविष्य सभी के कंधों पर टिका है।
मुख्यमंत्री पेमा खांडू ने इस प्रयास की सराहना करते हुए इसे “भारत की सच्ची भावना के शिखर” का प्रतीक बताया, क्योंकि तिरंगे ने सुदूर सीमावर्ती क्षेत्र को राष्ट्रीय गौरव और पर्यावरण संरक्षण के प्रति प्रतिबद्धता के जीवंत दृश्य में बदल दिया। मागो और चूना गाँवों के हर घर में गर्व से राष्ट्रीय ध्वज फहराया गया। देशभक्ति का यह सामूहिक कार्य इस बात की एक सशक्त याद दिलाता है कि हमारी स्वतंत्रता एक साझा ज़िम्मेदारी है और सामूहिक उत्सव का एक कारण है।



