छग में सिनेमा का इतिहास समृद्ध रहा है। रायपुर में सन् 1933 में पहला सिनेमा घर बना था। सन् 1933 से अब तक 9 सिनेमा घरों ने शहरवासियों का मनोरंजन किया है सबसे पुराना सिनेमाघर बाबूलाल टॉकिज था,जो मालवीय रोड में नगर निगम के पुराने मुख्यालय के पास बना था। वर्तमान में वहां बाबूलाल कॉम्प्लेक्स बन गया है। बाद में शारदा,मनोहर, अमरदीप टॉकिज की शुरुआत हुई। सभी में बाबूलाल ही ऐसी टॉकिज थी जिसमें मूक सिनेमा का प्रदर्शन किया गया। बाबूलाल टॉकिज ने देश भर में इतनी प्रसिद्धि पाई कि सन् 1950 के दौरान पृथ्वी थियेटर के बैनर तले ‘काबुलीवाला’ नामक नाटक का मंचन किया गया। नाटक काबुलीवाला, रविन्द्रनाथ टैगोर की बहुचर्चित कथाओं पर आधारित थी ,जिसमें शामिल होने खुद पृथ्वीराज कपूर रायपुर आए थे, शशि कपूर भी साथ थे। अब का जयराम कॉम्प्लेक्स भी सन् 1960 से सन् 1990 तक जयराम टॉकिज था। सन् 1960 से पहले इसे शारदा टॉकिज के नाम से जाना जाता था।
इसी नाम पर शारदा चौक नामकरण हुआ था, शारदा टॉकिज का नाम जब बदल कर जयराम टॉकिज हुआ तो मनोहर टॉकिज का भी नाम बदला गया। एमजी रोड पर दादाबाड़ी के बगल में स्थित मनोहर को शारदा टॉकिज नाम दिया गया,यहां एक साल तक ‘जय संतोषी मां’ फिल्म चली थी वहाँ शुक्रवार को फ़िल्म प्रदर्शन के दौरान गुड़-चना का भी प्रसाद बँटता था। शारदा टॉकिज,जयराम टॉकिज श्याम टॉकिज,बिलासपुर अमर टॉकिज के मालिक, रायपुर के ही शारदाचरण तिवारी थे। मप्र शासन में ये मंत्री भी रहे। शारदाचरण तिवारी के बेटे स्व.ललित तिवारी को सिने प्रदर्शन के क्षेत्र से योगदान के लिए 3 मई 2011 को दादा साहब फाल्के पुरस्कार दिया भी गया। ललित तिवारी को यह पुरस्कार उनके और परिवार के 50 सालों से भी ज्यादा समय तक सिनेमा के क्षेत्र में योगदान के लिए मिला था। रायपुर में पहले खेल के मैदान,बाग-बगीचों पुस्तकालय के अलावा मनोरंजन का बड़ा साधन सिनेमा ही हुआ करता था। तब नगर के सात टाकीज के बारे में भी पढ़ाया जाता था। उन सात टाकीजों के नाम राज कमल, बाबूलाल, शारदा, मनोहर,श्याम,कमल और दरबार टाकीज थे। बाद में रेल्वे स्टेशन के पास सम्राट, मौदहापारा-बॉम्बे मार्केट के पास आनंद टाकीज, समता कालोनी में होराज अमृत (कृष्णा) टाकीज भी बने पर लम्बे समय तक नहीं चल सके। बताया जाता था कि राजकमल टाकीज प्रसिद्ध फ़िल्म निर्माता व्ही शांताराम की थी। किसी भी फिल्म के प्रारंभ में परदे पर पुष्पांजलि देती युवती का चित्र आता था जो शांता राम प्रोडक्शन का लोगो था। बाद में थियेटर बिकने के बाद नाम राज टाकीज रख दिया गया । दरबार सिनेमा एवं कमल टाकीज का भी नाम बदला गया। कम लोगों को पता है कि गंज के पास स्थित प्रभात टाकीज का नाम पहले दरबार सिनेमा हुआ करता था जो राजनांदगांव के ठाकुर दरबारा सिंह की मिल्कियत थी। टाकीज का नाम बाद में प्रभात सिनेमा हो गया,यह राठी ग्रुप की टाकीज हो गई। कमल टाकीज के नाम बदलने का कारण हमें पता है। कमल टाकीज,मालवीय रोड से बांस टाल के रास्ते में ही स्थित है,जिसे बाद में अमरदीप टाकीज के नाम से जाना गया, टाकीज का नाम बदलने के पीछे एक दुखद घटना थी। उन दिनों वानखेड़े जी थियेटर में मैनेजर थे। अपनी नौकरी के दौरान एक दिन भिलाई से फिल्म की पेटी ले रायपुर आ रहे थे, सड़क दुर्घटना में उनकी मृत्यु हो गई थी, उम्र अधिक नहीं थी। ज़ब उनकी मृत्यु हुई तब कमल टाकीज में ‘अमरदीप’ फिल्म चल रही थी। इस असमय मौत से व्यथित होकर सिनेमा मालिक ने श्रद्धांजलि के रूप में थियेटर का नाम कमल से बदल अमरदीप टाकीज रख दिया था। वान खेड़े जी की पत्नी भी दानी स्कूल में टीचर थीं। सात टाकीज में शारदा, मनोहर और श्याम टाकीज नगर कांग्रेस के नेता,विधायक, मंत्री शारदाचरण तिवारी के थे। श्याम टाकीज में द ट्रेन, कमांडमेंट्स,बंगला फिल्म ‘काबुलीवाला’ एवं उत्तर काल में शहीद दिखाई थी। रायपुर में टाकीजों का इतिहास बहुत पुराना है। बाबू लाल टाकीज शहर के बीच जयस्तंभ के पास मालवीय रोड में थी, प्रारंभ में जब फिल्में मूक होती थीं तब एक तरफ आर्केस्ट्रा में धुन बजाई जाती थी तो दूसरी ओर टाकीज में परदे के पास खड़े होकर एक व्यक्ति संवादों को बोलता था और अगर बताने में चूक होती थी तो हाल से लोग चिल्लाने लगते थे कि बाबूलाल बता न क्या बोल रहा है…! वह व्यक्ति बताता था कि देखो दुल्हन ससुराल जा रही है? तब कोई दर्शक टिप्पणी भी करता था..तेरी बेटी है क्या.. तब प्रति उत्तर में वह व्यक्ति कहने मे गुरेज नहीं करता था..मेरी नहीं, तेरी बेटी ससुराल जा रही है…! बाद में शारदा टाकीज का नाम बदलकर जयराम हो गया था।
सिनेमा जगत से जुड़े उपादानों में क्रांति के साथ धीरे धीरे लगभग सभी थियेटर बंद हो गये।नतीजतन नगर में अब सिर्फ राज, श्याम और प्रभात टाकीज चल रही है बाकी सभी वीडियो हाल,वीसीआर से होकर आज माल संस्कृति की भेंट चढ़ गये हैँ ।
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